क्या है थाइरोइड ? किन कारणों से होता है थाइरोइड और इससे बचने के उपाय क्या हैं?

by Naina Chauhan
thyroid

थायरॉइड क्या है?

थायरॉयड एक तरह की ग्रंथि होती है, जो गले में बिल्कुल सामने की ओर होती है। यह ग्रंथि आपके शरीर के मेटाबॉल्जिम को नियंत्रित करती है। यानी जो भोजन हम खाते हैं यह उसे ऊर्जा में बदलने का काम करती है। इसके अलावा यह आपके दिल, मांसपेशियों, हड्डियों कोलेस्ट्रॉल को भी प्रभावित करती है।

इससे खास तरह के हॉर्मोन टी-3,टी-4 और टीएसएच का स्राव होता है। इसकी मात्रा के अंसतुलन का हमारी सेहत पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। शरीर की सभी कोशिकाएं सही ढंग से काम कर सकें, इसके लिए इन हॉर्मोन्स की ज़रूरत होती है। इसके अलावा, मेटाबॉल्जिम की प्रकिया को नियंत्रित करने में भी टी-3 और टी-4 हॉर्मोन का बहुत बड़ा योगदान होता है। इसलिए इनके स्राव में कमी या अधिकता का सीधा असर व्यक्ति की भूख, नींद और मनोदशा पर दिखाई देता है।

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किन कारणों से थायरॉयड होने की समस्या का सामना करना पड़ सकता है?[1]

थायरॉइड होने के कुछ सामान्य कारण निम्नवत हैं :-

1-सोया उत्पाद

इसोफ्लावोन गहन सोया प्रोटीन, कैप्सूल और पाउडर के रूप में सोया उत्पादों का जरूरत से ज्यादा सेवन थायरॉयड होने का कारण हो सकता है।

2-दवाएं

हृदय रोग के लिए ली गई दवाओं का बुरा प्रभाव हमारे शरीर पर पड़ता है। इससे थायरॉयड होने की आशंका रहती है।

3-रोग भी है कारण

किसी बीमारी के होने के बाद पिट्यूटरी ग्रंथी सही से काम नहीं कर पाती। इससे हार्मोन का उत्पादन सही से नहीं हो पाता।

4-आयोडीन प्रमुख कारण

भोजन में आयोडीन की कमी या ज्यादा आयोडीन के इस्तेमाल से भी थायरॉयड की समस्या में इजाफा होता है।

5-रेडिएशन थैरेपी

सिर,गर्दन या चेस्ट की रेडिएशन थैरेपी के कारण या टॉन्सिल्स, लिम्फ नोड्स, थाइमस ग्रंथि की समस्या के लिए रेडिएशन थैरेपी के कारण थायराइट की परेशानी हो सकती है।

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6-तनाव का असर

जब तनाव का स्तर बढ़ता है तो इसका सबसे ज्यादा असर हमारी थायरॉयड ग्रंथि पर पड़ता है। यह ग्रंथि हार्मोन के स्राव को बढ़ा देती है। ऐसे में हाइपोथायरोडिज्म होने की आशंका बढ़ती है।

7-परिवार का इतिहास

यदि आप के परिवार में किसी को थायरॉयड की समस्या है तो आपको थायरॉयड होने की आशंका ज्यादा रहती है। यह थायरॉयड का सबसे अहम कारण है।

8-ग्रेव्स रोग

ग्रेव्स रोग थायरॉयड का सबसे बड़ा कारण है। इसमें थायरॉयड ग्रंथि से थायरॉयड हार्मोन का स्राव बहुत अधिक बढ़ जाता है। ग्रेव्स रोग ज्यादातर 20 और 40 की उम्र के बीच की महिलाओं को प्रभावित करता है,क्योंकि ग्रेव्स रोग आनुवंशिक कारकों से संबंधित वंशानुगत विकार है, इसलिए थायरॉयड रोग एक ही परिवार में कई लोगों को प्रभावित कर सकता है।

9-गर्भावस्था

गर्भावस्था के समय और उसके बाद स्त्री के पूरे शरीर में बड़े पैमाने पर परिवर्तन होता है और वह तनाव ग्रस्त रहती है। इस कारण थायरॉयड की परेशानी बढ़ सकती है।

10-थायरायडिस

शुरुआती दौर में घेंघा होने के बाद ही थायरॉयड की परेशानी होती थी। आजकल इस पर काफी हद तक काबू पाया जा चुका है।

थायरॉइड रोग कितने प्रकार का होता है?

आमतौर पर दो प्रकार की थायरॉयड संबंधी समस्याएं देखने को मिलती हैं। पहले प्रकार की समस्या को हाइपोथायरॉयडिज्म कहा जाता है। इस में थायरॉयड ग्लैंड धीमी गति से काम करने लगता है और शरीर के लिए आवश्यक हॉर्मोन टी-3, टी-4 का पर्याप्त निर्माण नहीं कर पाता, लेकिन शरीर में टीएसएच का लेवल बढ़ जाता है। दूसरी ओर, हाइपरथायरॉयडिज़्म की स्थिति में थॉयरायड ग्लैंड बहुत ज्यादा सक्रिय हो जाता है। इससे टी-3 और टी-4 हॉर्मोन अधिक मात्रा में निकल कर रक्त में घुलनशील हो जाता है और टीएसएच का स्तर कम हो जाता है। अब तक हुए रिसर्च में यह पाया गया है कि किसी भी देश की कुल आबादी में 10 प्रतिशत लोगों को हाइरपरथायरायडिज़्म की समस्या होती है। ये दोनों ही स्थितियों में सेहत के लिए नुकसानदेह है। पुरुषों की तुलना में महिलाओं को यह समस्या ज़्यादा परेशान करती है।

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हाइपो-थॉयरायड के लक्षण

-एकाग्रता में कमी, व्यवहार में चिडचिड़ापन और उदासी।

-सर्दी में भी पसीना निकलना।

-अनावश्यक थकान और अनिद्रा।

-तेजी से वजन बढ़ना।

-पीरियड में अनियमितता।

-कब्ज़, रूखी त्वचा एवं बालों का तेजी से गिरना।

-मिसकैरिज या कंसीव न कर पाना।

-कोलेस्ट्रॉल बढ़ना।

-दिल की कार्य क्षमता में कमी।

-शरीर और चेहरे पर सूजन।

बचाव और उपचार

-अगर कोई समस्या न हो तो भी हर महिला को साल में एक बार थायरॉयड की जांच ज़रूर करानी चाहिए।

-अगर कभी आपको अपने भीतर ऐसा कोई भी लक्षण दिखाई दे तो हर छह माह के अंतराल पर थायरॉयड टेस्ट करवाने के बाद डॉक्टर की सलाह पर नियमित रूप से दवा का सेवन करें। इससे शरीर में हॉर्मोन्स का स्तर संतुलित रहता है।

-कंसीव करने से पहले एक बार जांच ज़रूर कराएं और अगर थायरॉयड की समस्या है तो कंट्रोल करने की कोशिश करें। प्रेग्नेंसी में इसकी गडबड़ी से एनीमिया, मिसकैरिज, जन्म के बाद शिशु की मृत्यु और शिशु में जन्मजात मानसिक विकृतियों की संभावना हो सकती है।

-जन्म के बाद तीसरे से पांचवें दिन के भीतर शिशु का थायरॉयड टेस्ट ज़रूर करवाना चाहिए

हाइपर-थायरॉयड के लक्षण

-वजन घटना।

-तेजी से दिल धड़कना।

-लूज़ मोशन होना।

-ज़्यादा गर्मी लगना।

-हाथ-पैर कांपना।

-चिड़चिड़ापन और अनावश्यक

-थकान होना।

-पीरियड में अनियमितता होना।

क्या है उपचार

अगर किसी महिला को ऐसी समस्या हो तो सबसे पहले डॉक्टर से सलाह के बाद नियमित रूप से दवाओं को सेवन करना चाहिए। अगर समस्या ज़्यादा गंभीर हो तो उपचार के अंतिम विकल्प के रूप में आयोडीन थेरेपी का या सर्जरी का इस्तेमाल किया जाता है। चाहे हाइपो हो या हाइपरथायरॉयडिज़्म, दोनों ही स्थितियां सेहत के लिए बेहद नुकसानदेह साबित होती हैं। इसलिए नियमित जांच और दवाओं का सेवन बेहद ज़रूरी है।