जब व्यक्ति बहुत अधिक डरता है या किसी बुरी परिस्थिति से लगने वाले डर की वजह से बहुत बेचैन रहता है, तब उस अवस्था को एंग्ज़ायटी अटैक या मानसिक व्यग्रता के नाम से जाना जाता है। इस अवस्था में व्यक्ति को बहुत ज़्यादा डर और बैचैनी रहती है। ऐसी अवस्था अधिकांशतः अचानक ही आती है, परंतु बहुत से मामलों में ऐसी अवस्था किसी परिस्थिति के कारण या कुछ बुरा होने की सम्भावना को सोच कर भी पैदा हो सकती है।
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आइए जानते हैं कि चिंता हमारे शरीर को कैसे प्रभावित करती है:
लीवर होता है प्रभावित: जब हम बहुत चिंता की स्थिति में रहते हैं, तब ऐसी अवस्था में हमारे शरीर से तनाव को बढ़ाने वाले हार्मोन कोर्टिजोल का बहुत अधिक मात्रा में उत्पादन होने लगता है। जिसकी वजह से हमारे लीवर में ग्लूकोज का स्राव भी बढ़ जाता है और ऐसी अवस्था में मधुमेह रोग से पीड़ित व्यक्तियों के रक्त में ग्लूकोज की मात्रा भी बढ़ जाती है और मधुमेह रोगियों को बहुत सी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
त्वचा से जुड़ी समस्याएँ: जब व्यक्ति बहुत अधिक चिंता जैसी समस्या से गुजरता है, तब उस समय शरीर की मांसपेशियों में रक्त का प्रवाह बहुत अधिक हो जाता है। जिसकी वजह से ठंड, चिपचिपा पसीना, गालों का गर्म होना जैसी समस्याएँ हो सकती हैं। क्रोनिक चिंता से पीड़ित होने पर त्वचा पर बहुत तेजी से झुर्रियां पड़ने की भी संभावना रहती है।
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तिल्ली पर प्रभाव: हमारे दिमाग और दिल के साथ चिंता तिल्ली और रक्त कोशिकाओं जैसे आंतरिक कार्यों को भी प्रभावित करती है। व्यक्ति जब चिंता में होता है, तब उस समय हमारे शरीर में ऑक्सीजन का स्तर कम हो जाता है, जिसकी वजह से तिल्ली अतिरिक्त लाल और सफेद रक्त कोशिकाओं का निर्वहन करना शुरू कर देती है।
इम्यून सिस्टम पर प्रभाव: चिंता के दौरान प्रतिरक्षा प्रणाली बहुत अधिक प्रभावित होती है। अध्ययन के अनुसार जब व्यक्ति चिंता में होता है तब उसको सर्दी-जुकाम होने की बहुत अधिक संभावना रहती है। ऐसे लोगों को संक्रमण और सूजन के लिए अतिसंवेदनशील पाया जाता है।
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रिपोर्ट: डॉ.हिमानी