भास्कर सूर्य को कहते हैं और उसका काम है अन्धकार से मुक्ति और धरती के सभी जीवों को जीबन देना एवं ऊर्जा और चेतना को बिखेरना। और यही काम आयुर्वेद का भी है इसलिये इसकी तुलना भास्कर से कई गयी। जैसे सूरज अपनी रोशनी,हवा, पानी बिना किसी भेद भाव के एवं बिना कोई निजी स्वार्थ के दुनिया के कल्याणके लिए प्रदान करता वही भावना आयुर्वेद में भी है। इसलिये इसे भास्कर ही महर्षियों ने मानकर इसकी उपासना की। इसलिए आयुर्वेद को आयुर्वेद भास्कर कहना सही भी है।
उचित प्रतीत होता है जगत को सूरज की किरणें अमृत तत्व देती है उसी से चर-अचर जीवों को शक्ति मिलती है वनस्पतियाँ एवं पृथ्वी पर निवासियों को जीने की ऊर्जा देता है। अब बात करते हैं आयुर्वेद भास्कर की तो यह सारा संसार आयुर्वेद भास्कर की असीम कृपा से ही चलाया मान है। संतो महर्षियों
एवं जन साधरण ने आयुर्वेद चिकित्सा का सदा उपकार माना है। आयुर्वेद जिसे महर्षियो के माध्यम से जन हित हेतु रचा गया एवं अनेक ऐसी ओषधियों का निर्माण किया गया जो आयुर्वेद चिकित्सा में उपयोग की जाने लगी।
कुछ ओषधियों के लिए सूर्य की किरने बहुत आवश्यक होती हैं इसलिये महर्षियौ ने इसे आयुर्वेद भास्कर की रचना की। आयुर्वेद में व्यक्तियों के जीवन-मरण तथा लम्बी आयु जीने के सूत्र है जिससे मानव अपनी पूर्ण आयु निरोगी रहकर जी सकता है। परन्तु आज के व्यस्त जीवनशैली और स्वार्थता के कारण समाज दिग्भृमित हो गया। आयुर्वेद चिकित्सा के अंतर्गत सूर्य के प्रकाश में रखे गए कई ऐसे रंग बिरंगे जल की व्यथा है जिससे कई रोगों से मुक्ति मिलती है। और आयुर्वेद भास्कर तो अपने आप में ही एक ग्रन्थ है जिससे कई लाइलाज बिमारियों से मुक्ति संभव है।
प्राचीन काल आयुर्वेद भास्कर शिक्षा का मुख्य विषय था। उस काल में आयुर्वेद भास्कर के साथ आयुर्वेद चिकित्सा भी अपनी महत्ता फैला रही था। पुराने समय में आयुर्वेद ही एक ऐसी चिकित्सा पद्धति थी जो दूर-दूर तक फैली हुई थी। आयुर्वेद भास्कर की चमक सबसे पुराणी रही है अनेक बिमारियों के इलाज यहाँ संभव हैं। दुनिया की किसी भी पैथी का उदय आयुर्वेद के सहयोग से ही पूरा हो पाया है इसलिये इसे आयुर्वेद भास्कर कहा गया।